Wednesday, December 16, 2009

Navkar Mantra

णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं,
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहुणं |

णमो अरिहंताणं - अरि-हननात अर्थात शत्रुओं के नाश करने से अरिहंत हैं| नरक निर्यंच, कुमानुष्य और प्रेत - इन पर्यायों में निवास करने से होने वाले समस्त दुखों कि पाप्ति में निमित्त होने से मोह को 'अरि' कहा है|

          शंका- केवल मोह को ही अरि मानने से क्या शेष कर्मों का व्यापर निष्फल हो जाता है?
          समाधान- ऐसा नहीं है; क्योंकि शेष सब कर्म मोह के अधीन हैं| मोह के बिना शेष कर्म अपने-अपने कार्य को करने में समर्थ नहीं पाए जाते, अतः ये स्वतन्त्र नहीं हैं

          शंका- मोह के नष्ट हो जाने पर भी कितने ही काल तक शेस कर्मों कि सत्ता रहती है, अतः मोह के अधीन कैसे हुए?
          समाधान- मोह रूप अरि के नष्ट हो जाने पर शेष कर्मों में जन्म-मरण कि परम्परा रूप संसार को उत्पन्न करने की सामर्थ्य  नहीं रहती, अतः उनका अस्तित्व असत्व के सामान है| फिर केवलज्ञान आदि समस्त आत्म्गुनों के आविर्भाव को रोकने में शेष कर्म असमर्थ होते हैं, अतः उनका रहना भी नहीं रहने के सामान है|
          अथवा राज का हनन करने से अरिहंत हैं| ज्ञानावरन और दर्शानावरणकर्म धूलि के सामान है; क्योंकि बाह्य और अन्तरंग समस्त त्रिकालवर्ती अनंत अर्थ पर्याय और व्यंजन पर्ययात्मक वस्तुओं का विषय करनेवाले बोध और अनुभव के प्रतिबंधक होते हैं| मोह भी रज है, क्योंकि जिनका मुख भस्म की धूलि से भरा होता है, उनकी तरह जिनकी आत्मा मोह से भरी रहती है, उनमें कुटिलता पायी जाती है|

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